435—105-03-11
जो हो रहा
साथ मेरे मैं ही जानता
फिर भी हंसता रहता
फ़िक्र नहीं करता
शिकवा किसी से ना रखता
दुआ उनके लिए करता
जो समझते नहीं मुझे
निगाह-ऐ-शक से देखते मुझे
इंसान नहीं ,हैवान समझते
देख कर भी अनदेखा करते
वो दिन भी आयेगा
जब ज़माने को समझ आयेगा
शक शुबहे मन के मिटेंगे
बहम दिल के दूर होंगे
जो आज ठुकरा रहे
कल करीब होंगे
जो सलूक अब तक किया
उस पर गिला करेंगे
निरंतर नफरत से देखा
जिन्होंने
माफ़ खुद को ना कर
सकेंगे
15—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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