सब बचपन में
पढी एक कहानी
भूल गए
कछुए और खरगोश की
दौड़ भूल गए
कछुआ जीता था
किसी को याद ना रहा
खरगोश सा दौड़ना
दिमाग में रहा
इस लिए सब
तेजी से दौड़ रहे
मंजिल तक पहुँचने को
बेताब हो रहे
कोई गिर रहा
कोई पड़ रहा
सांस किसी की
तेज़ चल रही
कोई सख्त बीमार,
पैर कब्र में लटक रहे
और पाने की दौड़ में
फिर भी भाग रहे
खुद को भी भूल गए,
खुदा को भी नहीं
बख्शते
याद करने का दस्तूर
निभाते
कहाँ दौड़ ख़त्म होगी
किसी को पता नहीं
मंजिल निरंतर दूर
होती जा रही
फिर भी सब दौड़ रहे,
निरंतर भूल रहे
जीत अंत में कछुए की
होती
सब्र की जीत सदा
होती
इच्छा की कोई सीमा
नहीं होती
15—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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