430—100-03-11
कल तक साथ थे
सब के पास थे
हँसते थे गाते थे
मन से मन
दिल से दिल मिलाते थे
हर किसी को
अपनेपन का अहसास
दिलाते थे
अब दूर तक नहीं दिखते
बेवक्त चले गए
जाने का वक़्त कब होगा
कोई तय नहीं करता
तुम उन में से थे
जो हमारे
बाद भी जाते तो
ज़न्नत में भी
अश्क हमारे बहते
खुले दिल से
स्वागत तुम्हारा करते
फिर से साथ होगे
खुश भी होते
हमसे पहले
दुनिया छोड़ गए
हमें भी
ज़न्नत नशीं होने का
रास्ता दिखा गए
निरंतर साथ निभाने का
सबब दे गए
14—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
(परिवार में हुयी अपूरणीय क्षति होने पर आये भावों को प्रस्तुत किया है)
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