Monday, March 14, 2011

मर मर कर कब तक जिएंगे



मर मर
कर कब तक 
तय कर लिया अब ख़त
ना लिखेंगे
ना बात कोई करेंगे उनसे 
मिलेंगे तो नज़र भी ना
मिलायेंगे उनसे
जवाब हमारे ख़त का
नहीं दिया उन्होंने 
 ना कोई बात करी हमसे
मिले तो 
देख कर मुंह फिरा लिया
उन्होंने
हमारी बातों को हवा में
उड़ा दिया उन्होंने
 हम फिर भी उन्हें चाहते
रहेंगे
उनके लिए जाँ भी लुटा देंगे
निरंतर दिल से चाहा
उन्हें
ऐसे नहीं सताएंगे जैसे
सताया हमें उन्होंने
14—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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