क्यों दिल
कांच सा होता
इतनी
ज़ल्दी क्यूं टूटता
सूरत
अपने अन्दर बसाता
किसी का प्यार
किसी का नफरत से
भरा होता
दिल किसी का पत्थर
किसी का फूल सा
कोमल होता
गम में दिल रोता
खुशी में बल्लियों
उछलता
निरंतर दिल चुप ना
रहता
कहीं ना कहीं लगता
रहता
19-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
450—120-03-11
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