अब क्या नहीं होता?
नेता अभिनय करता
निरंतर झूंठ बोलता
अफसर नित नए
घोटालों में फंसता
बेटा बाप का बाप होता
बाबा धर्म बेचता
परदे की आड़ में
ना जाने क्या क्या करता
ईमान का दाम लगता
व्यभिचार खुले आम होता
छात्र शिक्षक को सिखाता
शिक्षक,
छात्र सा व्यवहार करता
मोबाइल से सब कुछ होता
प्रेमी निरंतर बदलता
वेलेंटाइन डे सबसे बड़ा
त्योंहार होता
शर्म को किताबों में
पढ़ा जाता
आडम्बर आवश्यक होता
पैसा माँ बाप होता
धन का नंगा नाच होता
विश्वाश घात वक़्त का
तकाजा कहलाता
मगर गरीब का
कुछ नहीं बदलता
गरीब,गरीब रहता
निरंतर रोता था
अब भी रोता रहता
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
443—113-03-11
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