साहब का चपडासी था
इस बात का रूतबा था
साहब से डांट खाता,
गुस्सा,फ़रियाद ले कर
आने वालों पर उतारता
साहब व्यस्त हैं ,
ज़ल्द बाज़ी मत करो
बाद में आना कह कर
उन्हें अपना महत्त्व बताता
चाय पानी के पैसे
कभी छोटा मोटा
उपहार देने वालों पर
क्रपा रखता
उनकी पर्ची नीचे से
ऊपर करता
कब साहब का मूड ठीक है
कान में बताता
जो उसका ध्यान नहीं रखता,
उसकी पर्ची ऊपर ना
आने देता
साहब का मूड खराब हो
तो फौरन अन्दर भेजता
साहब के सामने भीगी
बिल्ली बनता
बेटा बेटी बीमार हो
अस्पताल में दिखाना हो
फ़रियाद से पहले
दस बार सोचता
जब साहब पुराने होते
हर आदत पहचानता
पसंद,नापसंद
अच्छी तरह पहचानता
कमजोरियां भी
खूब जानता
मिलने आने वाले
क्या काम करते
सब मालूम करता
खुद के काम भी
आसानी से निकालता
रहने का स्तर
तनखा से ज्यादा था
तनखा से ज्यादा था
बीस बरस बाद भी
साहब का
चपड़ासी रहना चाहता
उसे पता था साहब
तरक्की पाते पाते
सबसे बड़े साहब बनेंगे
उस के बच्चों की
नौकरी का प्रबंध
भी करेंगे
इस लिए पूरी
तन्मयता से
तन्मयता से
उनकी सेवा करता
साहब चाहे जल्लाद हो
उन्हें देवता कहता
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
444—114-03-11
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